Friday, March 29, 2024
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Chanakya Niti: ऐसे लोगों का त्याग करें जो आपके दुख का कारण बनें

Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य ने चाणक्य नीति में व्यक्ति के व्यवहार और स्वभाव के बारे में विस्तारपूर्वक वर्णन किया है, जिसके बारे में हर किसी को जानना चाहिए। आचार्य चाणक्य कहते हैं कि-

मूर्खशिष्योपदेशेन दुष्टास्त्रीभरणेन च।
दु:खितै: सम्प्रयोगेण पंडितोप्यवसीदति।।

अर्थात्- मूर्ख शिष्य को उपदेश देने से, दुष्ट स्त्री का भरण-पोषण करने से तथा दुखी लोगों के साथ रहने से पंडित यानि विद्वान व्यक्ति भी दुखी हो जाता है।

उपरोक्त श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य ने यह संदेश देते है कि अच्छे भले मनुष्य को किन बातों से दुख उठाना पड़ सकता है। उनके कहने का तात्पर्य यह है कि जो शिष्य लाख समझाने, शिक्षा देने के बाद भी मूर्ख का मूर्ख ही रहे, जिसे ज्ञान की बातें समझ में न आए, ऐसे शिष्य को शिक्षा देने का अर्थ है स्वयं को ही दुखी करना। कुछ लोग जड़मति होते हैं, जो माता-पिता या अन्य स्वजन के दबाव में आकर शिक्षा ग्रहण करने तो पहुंच जाते हैं किंतु उनका मन नहीं लगता। वे न तो शिक्षक की बात ध्यान से सुनते हैं और न उस पर अमल करते हैं। आज के संदर्भ में देखा जाए तो हमें स्कूल-कालेजों में ऐसे अनेक छात्र मिल जाएंगे जो केवल स्कूल समय काटने जाते हैं और स्कूल-कालेज में जाकर दूसरे छात्रों और शिक्षकों का परेशानी ही उत्पन्न बनते हैं।

दुखियों की सेवा करना मनुष्य का धर्म है

आचार्य चाणक्य ने श्लोक में दूसरी बात स्त्रियों के संदर्भ में कही है। दुष्टास्त्रीभरणेन च- अर्थात् जिस स्त्री का ध्यान परिवार में रहते हुए भी परिवार के सुख-दुख पर नहीं रहता, जो स्त्री मात्र अपने बारे में सोचती है, जिसे पति, बच्चों, सास-ससुर, स्वयं के माता-पिता, भाई-बहनों से कोई मोह नहीं उससे दूर ही रहना चाहिए। ऐसी स्त्री त्यागने योग्य होती है। तीसरी बात दुखी लोगों के संदर्भ में कही है। आचार्य के कहने का तात्पर्य है कि दुखी मनुष्यों की सेवा करना मनुष्य का धर्म है किंतु यह मनोभाव है कि जब व्यक्ति दुखी लोगों के मध्य में ही रहने लग जाता है तो उसका स्वभाव भी भीतर से दुखी हो जाता है। उसे चारों ओर दुख ही दुख दिखाई देता है।

ऐसे दुखों के कारणों को त्यागना ही श्रेष्ठ है

अत: जिन लोगों के जीवन का उद्देश्य कुछ अलग है। जो राज सत्ता तक पहुंचना चाहते हैं, जिन्हें जीवन में ऊंचाइयां प्राप्त करनी है, उन्हें उपरोक्त बातों में एक सीमा तक ही रहना है, उसके बाद उन्हें त्यागना ही श्रेष्ठ उपाय रहता है वरना वे आपको भी दुखी कर देंगे। अतः दुखी लोगों की बेशक मदद जरूर करें लेकिन उनके दुखों के बीच आप खुद फसकर ना लटक जाए।

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Sanjeev Shukla
Sanjeev Shuklahttps://www.rashtrabandhu.com
He is a senior journalist recognized by the Government of India and has been contributing to the world of journalism for more than 20 years.
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