Friday, March 29, 2024
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अपनी आत्मा का विकास करना ही हमारे जीवन का परम उद्देश्य: डॉ. जगदीश गाँधी

डॉ. जगदीश गाँधी, संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ

एक झोली में फूल भरे हैं एक झोली में कॉटे! कोई कारण होगा?:-

विश्व में वही परिवार, समाज तथा राष्ट्र उन्नति करता है, जिनके नागरिक कड़ी मेहनत तथा ईमानदारी से निरन्तर अपनी नौकरी या व्यवसाय करते हुए अपनी आत्मा का विकास करते हैं। इसके विपरीत जिन देशों के नागरिक ऐसा नहीं करते वो कही न कहीं अपने जीवन के परम उद्देश्य को ना तो समझ पाते हैं और न ही अपने परिवार, समाज और राष्ट्र की उन्नति में अपना योगदान दे पाते हैं। एक गीत की पंक्तियाँ हैं – एक झोली में फूल भरे हैं एक झोली में कॉटे! कोई कारण होगा? अर्थात् एक झोली में सफलता तथा एक झोली में असफलता भरी है, इसके पीछे के कारण को हमें जानते हुए अपनी झोली को फूल से भरने के लिए गंभीर प्रयास करना होगा।

ऐसी नौकरी तथा व्यवसाय करना चाहिए जो आध्यात्मिक संतुष्टि दे:-

हमारा मानना है कि नौकरी या व्यवसाय ही आत्मा के विकास का एकमात्र उपाय है। कुछ लोग अपने कार्य-व्यवसाय से इसलिए छुट्टी नहीं लेते हैं क्यांेकि वह अपने कार्य-व्यवसाय को परिवार तथा समाज की सेवा का

माध्यम मानते हैं। वे मानते हैं कि सारी वसुधा कुटुम्ब के समान है वे ऐसे कार्य-व्यवसाय चुनते हैं जिससे उन्हें आध्यात्मिक संतुष्टि का पूरा आनन्द भी प्राप्त हो। किसी ने सही ही कहा है कि धीरे-धीरे मोड़ तू इस मन को, इस मन को, मन मोड़ा फिर डर नहीं, कोई दूर प्रभु का घर नहीं। अतः मन को सामाजिक उत्तरदायित्वों की तरफ मोड़ना चाहिए। यह परमात्मा के प्रति हमारा उत्तरदायित्व है।

जन सेवा के पवित्र उद्देश्य से नौकरी या व्यवसाय करना चाहिए:-

आज मनुष्य उहापोह, अनिश्चय एवं संशय की स्थिति में रह रहा है। साथ ही निरन्तर यह प्रश्न हर व्यक्ति को अंदर से सदैव परेशान करता रहता है कि क्या नौकरी, उद्योग या व्यवसाय हमारी आत्मा के विकास मंे सहायक है या बाधक है? परमात्मा ने मनुष्य को स्वतंत्र इच्छा शक्ति दी है। वह चाहे तो प्रभु की प्रसन्नता के हेतु जन सेवा के पवित्र उद्देश्य से अपनी आजीविका का उपार्जन मजदूरी, किसानी, नौकरी उद्योग या व्यवसाय के द्वारा करके ‘अपनी आत्मा का विकास करले’ या फिर चाहे तो ‘स्वार्थपूर्ण भावना’ से अधिक से अधिक केवल भौतिक लाभ कमाने के लिए मजदूरी, किसानी, नौकरी, व्यवसाय या उद्योग करके अपनी आत्मा का विनाश कर ले?

समाज विरोधी व्यवसाय करने से हमारी आत्मा का विनाश होता है:-

व्यापार से नहीं वरन् अधिक से अधिक लाभ कमाने की नियत से, नकली को असली वस्तु बताकर बेचने से तथा मिलावट करने और कम तौलकर देने और उसके पूरे दाम वसूलने से आत्मा कमजोर होती है। यदि हम व्यापार के नाम पर जुआ-सट्टा खिलायंे, गंदे सिनेमा बनायंे, वैश्या वृत्ति को बढ़ावा दें, शराब बनाने का धन्धा करें तो इस तरह के मानव अहित के एवं समाज विरोधी व्यवसाय करने से हमारी आत्मा का विनाश होता है। ईमानदारी तथा सेवाभाव से की गई लोक हितकर नौकरी या व्यवसाय के अलावा आत्मा के विकास का और कोई उपाय नहीं है।

मानव जीवन की तीन वास्तविकतायें हैं: डॉ. जगदीश गाँधी

पहला मनुष्य एक भौतिक प्राणी है, दूसरा मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तथा तीसरा मनुष्य एक आध्यात्मिक प्राणी है। बच्चों को बाल्यावस्था से घर में माता-पिता द्वारा तथा स्कूल में टीचर्स द्वारा भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक गुणों को विकसित करने का संतुलित ज्ञान देना चाहिए।

सांसों का यह खजाना यूं ही न लूटाना:-

हम सभी के जीवन में हमारे विचारों का सबसे अधिक महत्व है। इसलिए हमें परमात्मा को अपनी बुद्धि समर्पित करके प्रत्येक कार्य करना चाहिए। आप देखे रावण को चारों वेदों का ज्ञान था लेकिन भौतिक सुख की पूर्ति के लिए उसने सही या गलत का विचार करना ही बंद कर दिया। रावण के विनाश का यह सबसे बड़ा कारण था। हमारे बहुत सारे दुखों का कारण मस्तिष्क से अच्छे तथा बुरे का विचार न करने की आदत है। सांसों का यह खजाना यूँ ही नहीं लुटाना चाहिए। इसे प्रभु के कार्य में लगाना चाहिए। अवतार मानव जाति के दुखों को अपना सुख बना लेते हैं जबकि संसारवासियों के लिए सुख कांटें बन जाते हैं।

तूने खूब रचा भगवान खिलौना माटी का:-

परमात्मा ने मनुष्य को एक ही मिट्टी से इसलिए बनाया है कि हम आपस में मिलजुल कर प्रेमपूर्वक रहे। जो जैसा अच्छा तथा बुरा कार्य करता है परमात्मा उसे वैसा फल देता है। परमात्मा ने संसार का ऐसा विधि-विधान बनाया है कि जो जैसा करता है वैसा फल पाता है। आज नहीं तो कल अपने कर्मों का दण्ड भुगतना पड़ता है। परमात्मा क्षीर सागर में बैठकर अपनी सृष्टि तथा प्राणियों को देखकर आनन्द लेता रहता है। परमात्मा ने अच्छे कार्य तथा बुरे कार्य करने वालों का लेखा-जोखा रखने के लिए दो क्लर्क नियुक्त कर रखे हैं। एक क्लर्क अच्छे कार्य करने वालों का लेखा-जोखा रखता है तथा दूसरा क्लर्क बुरे कार्य करने वालों का लेखा-जोखा रखता है। इस प्रकार परमात्मा द्वारा निर्मित सृष्टि के सारे कार्य आटोमेटिक चलते रहते हैं। जो व्यक्ति प्रभु की राह पर कदम बढ़ाता है उसे प्रभु अपनी शरण में ले लेता है। किसी भी कार्य को करने के पूर्व उसके अन्तिम परिणाम पर विचार कर लेना चाहिए। रोजाना हमारे प्रत्येक कार्य प्रभु की सुन्दर प्रार्थना बने।

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अपनी आत्मा का विकास करना ही हमारे जीवन का परम उद्देश्य:-

राम, कृष्ण, बुद्ध, ईशु, मोहम्मद, नानक तथा बहाउल्लाह ने परमात्मा के कार्य के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया। परमात्मा ने इन्हें अपनी शरण में ले लिया। ये अवतार युगों-युगों के लिए अमर हो गये। परमात्मा ने इन अवतारों की झोली में फूल भर दिये। प्रभु के अवतार एवं उनके द्वारा प्रकटित ग्रंथ गीता, त्रिपटक, बाइबिल, कुरान, गुरू ग्रन्थ साहिब, किताबे अकदस आदि ही हमारे सच्चे गुरू होते हैं, जो हमें ईश्वर का अर्थात ईश्वर की शिक्षाओं को ज्ञान कराते हैं और उन पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। इसीलिए कहा भी गया है कि गुरू गोविन्द दोनों खड़े काके लागू पाँव, बलिहारी गुरू आपकी जिन गोविन्द दियो बताय। मात्र सांसारिक वस्तुओं का अत्यधिक संग्रह करना ही मानव जीवन का लक्ष्य नहीं है वरन् शरीर के द्वारा आत्मा का विकास करना ही हमारे जीवन का परम उद्देश्य है।

– वसुधैव कुटुम्बकम् – जय जगत –

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Sanjeev Shukla
Sanjeev Shuklahttps://www.rashtrabandhu.com
He is a senior journalist recognized by the Government of India and has been contributing to the world of journalism for more than 20 years.
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